धैर्य - अति लघुकथा जेठ की सड़ी-चिपचिपी गर्मी में दोपहर को भीड़ से ठसाठस भरी प्राइवेट बस से घर लौटते समय राघव ये समझ पाया कि धैर्य किसे कहते हैं ? जब सारी भीड़ लगातार ड्राइवर-कंडक्टर को बार बार बस रोककर यात्रियों को चढाने और उतारने पर कोसती रही और वो अपना काम बिना कोई जवाब दिए करते रहे | -डॉ शिखा कौशिक 'नूतन '